शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

बेरोजगार

"बेरोजगार"

ट्रेन से कटी....
एक युवक की लाश ....
वहीँ पास में पड़ा एक छोटा बैग.......
घेरा बनाए हुए भीड़....
अपना अपना विचार दे रहे लोग...
ऐसा रहा होगा, वैसा रहा होगा...
तभी पुलिस आयी.....
बैग खोला गया...
तमाम डिग्रियां और प्रमाणपत्र...
पता चला युवक डबल एम ए था ...
एक सुसाइड नोट भी था....
लिखा था....
"आज जहाँ इंटरव्यू था...
वहां की रेट भी वही थी...
पचास हज़ार रूपये...
अब मुझे कहीं काम नहीं मिलेगा...
नहीं सह सकता अब और ताने....
नहीं जी सकता अब बन कर....
"बेरोजगार"
वल्लभ.....जुलाई, सन् १९९०

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

प्यासा पथिक

प्यासा पथिक

जेठ की चिलचिलाती धूप...
गर्म हवाएं, तपती सड़क...
उस पर चल रहा...
एक पथिक.....
बेचैन है अपनी मंजिल तक
पहुचने के लिए...
रास्ते से कुछ दूर...
एक अकेला वृक्ष...
रुकता है पथिक थोडी देर....
सता रही है उसे प्यास...
लेकिन पानी कहाँ है?...
पास का कुआँ तो सूखा है...
"जब पानी ही नहीं होगा तो कैसे जियेंगे हम?".......
यही सोचता.....
अपनी मंजिल की ओर
फिर चल देता है
"प्यासा पथिक"
वल्लभ.....मार्च, सन् १९९०

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

बेचारा किसान

बेचारा किसान

भारत कृषि प्रधान देश है.....
तमाम जनता कृषि पर निर्भर करती है.....
देश का बजट भी
किसानो के लिए ही बनता है.....
चुनाव के समय भी किसानो की ही बात होती है....
नेतागण खुद को
किसानो का मसीहा कहते हैं....
कहते हैं..... किसानो की स्थिति सुधरी है...
क्या सुधरी है?
पहले किसान
बादलों को देख कर जीता था,
आज बिजली के तारों को देख कर जीता है...
फसल सूख जाती है...
जीवन भर यही आस लिए
कि
अच्छी फसल होगी तो
क़र्ज़ चुकेगा.....
क़र्ज़ में जन्मा.... क़र्ज़ में बढा....
और
क़र्ज़ में ही मर जाता है......
" बेचारा किसान"
वल्लभ... मई, सन् 1990

सोमवार, 27 जुलाई 2009

जान की कीमत

जान की कीमत

आज फिर हो गई एक ट्रेन दुर्घटना.......
सैकडों मरे ......इतने ही घायल...
कई कलाइयाँ सूनी हो गई
कितने ही बेसहारा हो गए.....
कटी फटी लाशें ....
विकृत चेहरे ....
जमा लोग....
अपनों को खोजती निगाहें....
राहत कार्य के नाम पर...
हाथ की घडियां और पाकेट का पर्स
निकालने वाले लोगों की सक्रियता....
इतने में कारों का काफिला आया....
सबने कहा....
शायद मंत्री जी आये हैं...
हाँ.. वे ही हैं......
उन्होंने जाँच समिति गठित करने का दिया आश्वासन......
और मरने वालों के परिवारों को...
पचास पचास हजार का चेक ....
क्या यही है देश में...
नागरिकों के
"जान की कीमत"
वल्लभ... मई, सन् 1990

गरीब बच्चें

गरीब बच्चें

जनवरी की सुबह
हर तरफ घना कुहरा ...
और धुंध....
खाली सड़क...
लेकिन
इन सब की परवाह किये बिना.....
नंगे पैर ...
गंदे बदन पर
आधे अधूरे चीथड़ों के साथ ...
कंधे पर बडा झोला लिए...
रोज की तरह ...
आज भी निकल पड़े हैं.....
कूड़े की ढेर से
प्लास्टिक बटोरने.....
"गरीब बच्चे"
वल्लभ.... जुलाई 1990

भारतीय स्टोव

"भारतीय स्टोव"

तुम भी बड़े अजीब हो...
जाने कौन सा बैर है
तुम्हारा नवब्याहताओं से ?
जान के दुश्मन बन जाते हो ...
ससुराल में...
कभी नहीं सुना गया तुम्हारा फूटना ....
मायके में, या किसी..
कुवांरी लड़की के पास..
फिर क्या हो जाता है तुम्हे...
ससुराल में ?
आखिर क्यों विस्फोट करते हो ?
तुम कब सुधरोगे ?
" भारतीय स्टोव"
वल्लभ...जुलाई, सन् 1990