"भारतीय स्टोव"
तुम भी बड़े अजीब हो...
जाने कौन सा बैर है
तुम्हारा नवब्याहताओं से ?
जान के दुश्मन बन जाते हो ...
ससुराल में...
कभी नहीं सुना गया तुम्हारा फूटना ....
मायके में, या किसी..
कुवांरी लड़की के पास..
फिर क्या हो जाता है तुम्हे...
ससुराल में ?
आखिर क्यों विस्फोट करते हो ?
तुम कब सुधरोगे ?
" भारतीय स्टोव"
वल्लभ...जुलाई, सन् 1990
4 टिप्पणियां:
theek likha maayke me stove kabhi fataa ho abhi tak nahi suna...vibha
बहुत अच्छी रचना है
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चाँद, बादल और शाम
नही भाई! यह भारतीय स्टोव जहाँ मात्र छडे़ रहते है वहाँ भी फूटता है...भले ही उन्हीं की गलती से।एक बार हम भी इस से बाल बाल बचे हैं.:)
अच्छी रचना है बधाई।
बहुत अच्छी रचना. बधाई.
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