सोमवार, 27 जुलाई 2009

गरीब बच्चें

गरीब बच्चें

जनवरी की सुबह
हर तरफ घना कुहरा ...
और धुंध....
खाली सड़क...
लेकिन
इन सब की परवाह किये बिना.....
नंगे पैर ...
गंदे बदन पर
आधे अधूरे चीथड़ों के साथ ...
कंधे पर बडा झोला लिए...
रोज की तरह ...
आज भी निकल पड़े हैं.....
कूड़े की ढेर से
प्लास्टिक बटोरने.....
"गरीब बच्चे"
वल्लभ.... जुलाई 1990

3 टिप्‍पणियां:

Meenu Khare ने कहा…

मार्मिक कविता. बहुत अच्छी.


मीनू खरे

http://meenukhare.blogspot.com/2009/08/blog-post.html

शेफाली पाण्डे ने कहा…
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शेफाली पाण्डे ने कहा…

एक से बढ़कर एक भावप्रवण रचनाओं को टाइम पास कहना कहाँ का इन्साफ है ?/??