गरीब बच्चें
जनवरी की सुबह
जनवरी की सुबह
हर तरफ घना कुहरा ...
और धुंध....
खाली सड़क...
लेकिन
इन सब की परवाह किये बिना.....
नंगे पैर ...
गंदे बदन पर
आधे अधूरे चीथड़ों के साथ ...
कंधे पर बडा झोला लिए...
रोज की तरह ...
आज भी निकल पड़े हैं.....
कूड़े की ढेर से
प्लास्टिक बटोरने.....
"गरीब बच्चे"
वल्लभ.... जुलाई 1990
3 टिप्पणियां:
मार्मिक कविता. बहुत अच्छी.
मीनू खरे
http://meenukhare.blogspot.com/2009/08/blog-post.html
एक से बढ़कर एक भावप्रवण रचनाओं को टाइम पास कहना कहाँ का इन्साफ है ?/??
एक टिप्पणी भेजें