समग्र विकास
सुदूर का गाँव...
पीपल पाकड़ की छाँव ....
पगडण्डी वाला रास्ता...
बिना तार के बिजली के खम्भे ...
टपकती छत वाला
बिना मास्टर का प्राईमरी स्कूल...
कभी न खुलने वाला... जच्चा बच्चा केन्द्र...
कभी कभी खुलने वाली... राशन की दूकान....
पुश्तैनी बाहुबली.... प्रधान ....
बदहाल मजदूर, किसान....
गुल्ली- डंडा खेलते,
नंगे बदन बच्चे....
नयेपन का अभाव...
स्थिर सा जीवन....
फ़िर भी है विश्वास....
कभी जरूर होगा....
हमारे गाँव का...
" समग्र विकास" ................... वल्लभ ( मई १९९०)
4 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना आभार.
बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति!
बहुत ही प्रिय रचना...आभार.
ur poem was great and i hope u would like to wright some special things like this.
This is a real view of surounding.
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