शनिवार, 8 अगस्त 2009

समग्र विकास


सुदूर का गाँव...
पीपल पाकड़ की छाँव ....
पगडण्डी वाला रास्ता...
बिना तार के बिजली के खम्भे ...
टपकती छत वाला
बिना मास्टर का प्राईमरी स्कूल...
कभी न खुलने वाला... जच्चा बच्चा केन्द्र...
कभी कभी खुलने वाली... राशन की दूकान....
पुश्तैनी बाहुबली.... प्रधान ....
बदहाल मजदूर, किसान....
गुल्ली- डंडा खेलते,
नंगे बदन बच्चे....
नयेपन का अभाव...
स्थिर सा जीवन....
फ़िर भी है विश्वास....
कभी जरूर होगा....
हमारे गाँव का...
" समग्र विकास" ................... वल्लभ ( मई १९९०)



4 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना आभार.

अनुनाद सिंह ने कहा…

बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति!

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत ही प्रिय रचना...आभार.

jitendra pandey ने कहा…

ur poem was great and i hope u would like to wright some special things like this.

This is a real view of surounding.