शनिवार, 22 अगस्त 2009

तीज का उपवास

''तीज का उपवास ''

रात के ८ बजे...

आज फिर आ रही थी...

चीखने- चिल्लाने की आवाज....

हमारे होस्टल के पीछे वाली बस्ती से...

वही रोज की कहानी...

पति का दारू पीकर आना...

और पत्नी की हिंसक पिटाई...

गाली गलौज...

भाग - दौड़...

बच्चों की चीख पुकार...

सिसकियाँ..

और फिर...

डरावनी खामोशी...

कुछ नया नहीं था...

बस.....आज उस पत्नी ने...

पति की खुशहाली के लिए...

रखा था....

" तीज का उपवास " ..............वल्लभ ( सितम्बर १९८९)

26 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

गहरी बात
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आनंद बक्षी

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

Udan Tashtari ने कहा…

गहन अभिव्यक्ति!!

Himanshu Pandey ने कहा…

प्रासंगिक रचना । सत्य तो यही है । मार्मिक अभिव्यक्ति ।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पाण्डेय जी |आज आपसे पहली मुलाकात है ,टिप्पणी भी ऐसी के कि दर्शन की इच्छा जाग्रत हुई |ये समझ में नहीं आया के आप मेरे ब्लॉग तक पहुंचे कैसे खैर |तीज का ब्रत बहुत अच्छी व्यग्य रचना ,सच्ची रचना ,इसे पढ़ कर तो प्राईमरी स्कूल और एक पागल पढने की भी इच्छा हुई _आप बहुत अच्चा व्यंग्य लिखते है छोटी रचना लेकिन चुटीली |कबाड़खाने में आपको पुरानी डायरी मिली यह हमारा सौभाग्य है कृपया नई डायरी और बना लीजिये |एक रचना पुरानी से एक नई से हमें लाभान्वित कीजिए |आपके यहाँ तो साहित्य का भंडार होता है हम तो मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के है जहाँ न पत्रिकाएं मिलती है न अच्छा साहित्य |अच्छा पढेंगे नहीं तो लिखेंगे कैसे |वैसे भी अब ढलती उम्र है |खैर आपसे मुलाकात ब्लॉग के माध्यम से होती ही रहेगी

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

कुछ नया नहीं था...

बस.....आज उस पत्नी ने...

पति की खुशहाली के लिए...

रखा था....

" तीज का उपवास "

वाह ....बेमिसाल ....बहुत सुंदर......!!

श्यामल सुमन ने कहा…

प्रशंसनीय रचना है वल्लभ जी। बहुत खूब।

अजित वडनेरकर ने कहा…

सुंदर रचना। बधाई....

Mahesh ने कहा…

सही कहा आपने....पति परमेश्वर....मान कर
हर दुःख और दर्द सह के भी ....
उसकी लम्बी उम्र की दुआ.... और पति के सुधरने की उम्मीद..
इस सदी में भी आधी दुनिया ऐसे ही जी रही है....
लेकिन उम्मीद एक जिन्दा शब्द है.... हालात बदलेंगे...
किसी ने बहुत खूब लिखा है...........
"इरादे कर बुलंद रहना शुरू करती तो अच्छा था.
तू सहना छोड़ कर कहना शुरू करती तो अच्छा था.
तेरे माथे पे ये आँचल बहुँत ही खूब है लेकिन.
तू इस आँचल का एक परचम बना लेती तो अच्छा था"
....यूं ही सालों पहले पैदा हुए...
जज्बातों की सुंगध ब्लॉग पर बिखेरते रहिये....
शुभकामनाओं के साथ......

Urmi ने कहा…

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरा ब्लॉग और कविता पसंद आया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना बहुत अच्छा लगा !

govind ने कहा…

भाई साहब अभिव्यक्ति बहुत बहुत मार्मिक है देश की सत्तर प्रतिशत महिलाएं इस दंश को झेल रही हैं यह अभिव्यक्ति ने सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है महिलाएं तो पति के लिए तीज व्रत इत्यादि पतियों से सम्बंधित व्रत रखती हैं तो पति क्यूँ नहीं ............?
इस अभिव्यक्ति ने हमारे सामने एक दृश्य प्रस्तुत किया है जो मैंने भी देखा है एक स्त्री अपने पति के लिए व्रत रखती है और रात को पति दारु पी कर आता है और उसके व्रत की अवहेलना कर उसे पीटता है .........पत्नी अपने बच्चों के साथ रोती है ..........
इस रचना के लिए दो पंक्तियाँ नारी पीडा को समर्पित है ......
मैं एक माँ हूँ
मैं एक बहिन हूँ
मैं एक सच्ची जीवनसाथी हूँ
मैं सिर्फ एक औरत हूँ............

Chandan Kumar Jha ने कहा…

भावुक करती रचना.

बेनामी ने कहा…

Sarahneey rachna.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

हेमन्त कुमार ने कहा…

बेहतर।आभार।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह क्या विरोधाभास है.सच है भारतीय नारी की यही त्रासदी है.

alka sarwat mishra ने कहा…

वल्लभ जी आपकी कविता की तारीफ़ इसलिए नहीं करूंगी कि लेखन अच्छा है ,वरन इसलिए करूंगी कि एक ब्लॉगर गोविन्द जी ने यह तो सोचा कि पत्नियां ही व्रत क्यों करती हैं पति क्यों नहीं
मुझे आज तीसरी बार जीवन में यह बात बहुत अच्छी लगी . पहली बार तो तब जब मैंने सूना था कि करवा चौथ का एक व्रत मेरे पापा ने रखा था ,उस करवा चौथ को मैं पैदा हुई थी और पापा ने मम्मी के जल्दी स्वस्थ हो जाने के लिए ही रखा था .दूसरी बार तब जब मेरे पति ने कहा कि तीज का आधा व्रत तुम करोगी आधा मैं ,पूरे २४ घंटे तुम नहीं भूखी रहोगी ,१२ घंटे तुम और १२ घंटे मैं ,हो गया पूरा .तुम मेरे लिए ,मैं तुम्हारे लिए . यह क्रम आज तक चला आ रहा है
गोविन्द जी से बता दीजियेगा कि सोचने के लिए शुक्रिया ,अब ज़रा कर के दिखाइये

अशरफुल निशा ने कहा…

Sundar prastuti.
Think Scientific Act Scientific

kamlakar mishra smriti sansthan india ने कहा…

it is very touching.thanks

kshama ने कहा…

Aah!

Anisha ने कहा…

aaj kl kahan hain? kya purani dairy me itna hi tha? ya koi kabaadi le gaya?
kuchh likhiye.

अंजना ने कहा…

सुंदर रचना।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता....


'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

आपको महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएं

Dimple Maheshwari ने कहा…

dardnaak..par hakikat ko byaan karti marmik kavita

POOJA... ने कहा…

waah...
bahut khoob...
ye hai hamarai INDIAN NAARI...