गुरुवार, 13 अगस्त 2009
''एक पागल''
सड़क पर घूम रहा है...
एक इंसान.....
मस्त है अपनी धुन में....
किसी से कोई शिकवा - शिकायत नही है उसे....
शायद, किसी से प्यार भी नही....
बेखबर है..........
कि दुनिया में लूट, डकैती और मार काट मची है......
अनजान है ........
कि चारों ओर,
भ्रष्टाचार और अराजकता व्याप्त है....
उसे क्या लेना देना इन सब से ?
वह तो ढूंढ़ रहा है...
एक अनजान मंजिल.
वह हँसता है हम पर.....
शायद , यह सोच कर....
कैसे 'पागल' हैं ये लोग.....
जो...
लड़ रहे हैं जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और संप्रदाय
के नाम पर....
आकंठ डूबे हुए हैं ये लोग.....
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार में....
लेकिन॥
हमारा सभ्य समाज...
उस इंसान को कह रहा है ...
वो देखो...
"एक पागल'' ................................वल्लभ ( सितम्बर ९०)
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7 टिप्पणियां:
सच कहा आपने...
ये दुनिया पागल खाना है.....
कोई पागल राम भजन में.....
कोई कोठी कार में....
कोई बिक जाता मेरे भाई दौलत के बाजार में....
बच्चें पागल, बूढे पागल, पागल आज जमाना है....
चाहे जितना उडो गगन में धरती पर तुझे आना है..
ये दुनिया पागल खाना है...
यूं ही पुरानी डायरी की भीनी सुगंध.....
फ़िजा में बिखेरते रहिये.... लिखते रहिये...........
यही तो अंतर्विरोध है
nice,Acchi kaviya hai
suman
loksangharsha.blogspot.com
बहुत खूब।
मैं हो न जाऊँ पागल पागल की देख मस्ती।
दुनिया मुझे क्यों लगती पागल की एक बस्ती?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
kya kahu kuchh kaha nahi jata bin kahe bhi raha nahi jata.
its a great one.
sach hi to hai........
paagal hi doosre ko paagal kahta hai... jabki insaan jise paagal kah raha hai vo to aisaa nahi kahta.......to koun pagal hai....... lajawaab likha hai.......
" दीवाना जो भी कहेगा , पतेकी बात कहेगा !"
वो तो अपने आप में मगन होते हैं , पगलाए तो हम रहते हैं !मतिमंद बच्चों को बेकारही 'mentally challenged' कहा जाता है..उन्हें कोई फ़र्क़ नही...एक आव्हान तो हमारे लिए होता है..हम जो अपने आपको 'अक़लमंद' कहते हैं!
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