शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

"आज का अखबार"

"आज का अखबार"

रोज की तरह
आज भी अखबार आया.....
लेकिन मेरे जागने से पहले....
ये क्या...
कल भी तो यही सब था...
लूट, हत्या, डकैती....
ट्रेन दुर्घटना, चोरी, छिनैती....
बलात्कार और लठैती....
समाचारों में कुछ नया नहीं....
भ्रम हुआ....
कहीं ये पुराना अखबार तो नहीं.....
तभी नजर पडी....
" ४० करोड़ का घोटाला"
हाँ ये है ताज़ा समाचार....
पक्का !
ये है...
"आज का अखबार"
वल्लभ.... दिसम्बर, १९८९

5 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

नया क्या ? सच ही है - कत्ल, चोरी, रहजनी की ही खबरें तो उन्हें छापनी आती हैं ।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया व्यंग्य कसा है.....आज कल के हालात पर।अच्छी रचना है।बधाई।

Unknown ने कहा…

इस देश के लोग भी न बस... भगवान बचाए इनसे....
कुछ करो तो इन्हे परेशानी कि क्यों इतने अपराध हो रहे हैं... और न करो तो रोज अखबार इतने सेम क्यों बोरिंग क्यों.... हुंह...।।।।
www.nayikalam.blogspot.com

Meenu Khare ने कहा…

अच्छी रचना । बधाई स्वीकारें ।

विधुल्लता ने कहा…

अखबार में नया कहाँ से आयेगा ...जब रोजमर्रा में कहीं कोई तबदीली नहीं ....छोटी किन्तु अच्छी रचना बधाई